Capt Amarinder Singh in BJP

कैप्टन अमरिंदर सिंह भाजपा में

Capt Amarinder Singh in BJP

Capt Amarinder Singh in BJP

पंजाब की सियासत में एक 80 वर्षीय बुजुर्ग अगर अब भी अपनी प्रासंगिकता बनाए हुए है कि केंद्र में सत्ताधारी पार्टी उन्हें सहर्ष अपने पाले में ले लेती है, तो उन बुजुर्ग राजनीतिक का करियर अब बाकी समझा जाना चाहिए। कैप्टन अमरिंदर सिंह को उनका मुख्यमंत्री का कार्यकाल कांग्रेस ने पूरा नहीं करने दिया था, उस समय उनके चेहरे से निराशा साफ झलकती थी। उनकी पार्टी जिसका अब उन्होंने भाजपा में विलय कर लिया, विधानसभा चुनाव में कुछ भी हासिल नहीं कर पाई। कहा जाने लगा था कि कैप्टन अब चूक गए हैं। लेकिन एक शाही परिवार के वंशज होने और सेना का उनका प्रशिक्षण उनके काम आया, कैप्टन लड़े हैं और लड़ रहे हैं और अब एक बार फिर उन्होंने वर्चस्व की लड़ाई का ऐलान किया है। पिछले दिनों उन्होंने विदेश में अपना इलाज कराया है, जिसके बाद अब वे तुलनात्मक रूप से गजब के जवान लग रहे हैं। क्या यह पंजाब के लिए सकारात्मक नहीं है कि कोई उसकी सेवा के लिए इस उम्र में भी सक्रिय है और लगातार आगे बढ़ने का साहस दिखा रहा है।

कैप्टन अमरिंदर सिंह की कहानी ऐसी है, जिस पर फिल्म बन सकती है और यह फिल्म बेहद दर्शनीय होगी। इसमें एक राजवंशी के उस संघर्ष का विवरण होगा, जिसमें वह अकेले उस समय कांग्रेस पार्टी को सत्ता में ले आए थे, जब वह पंजाब में लगभग मरणासन्न हालत में थी। वर्ष 2002 से 2017 के उनके बतौर मुख्यमंत्री कार्यकाल को इसी तरीके से देखा जाना चाहिए। वे कैप्टन ही थे जिनके इशारे पर पार्टी में नई जान पड़ती दिखी थी और प्रदेश की जनता ने उन पर भरोसा जताते हुए उन्हें सत्ता की चाबी सौंपी थी। उनका दूसरा कार्यकाल भी कम रोचक नहीं रहा। वे कांग्रेस को दोबारा सत्ता में लेकर आए और तमाम दुश्वारियों से जूझते रहे।

उनके दूसरे कार्यकाल में नवजोत सिंह सिद्धू उनके लिए ऐसी अड़चन बने जिन्होंने न केवल सरकार को चलाना मुश्किल बनाया, अपितु देश और बाहर भी कैप्टन सरकार को सवालों के घेरे में ला दिया। संभव है, अगर नवजोत सिंह सिद्धू अगर कांग्रेस में न आए होते तो आज भी कैप्टन अमरिंदर सिंह कांग्रेसी होते और वे बतौर मुख्यमंत्री अपना दूसरा कार्यकाल शांतिपूर्वक पूरा कर चुके होते। हो सकता है, उनके कांग्रेस में रहते पार्टी चुनाव में इतनी शर्मनाक हार का सामना नहीं करती।

भाजपा ने बीते कुछ समय के दौरान जिस प्रकार खुद को बदला है, वह विरोधियों को हतप्रभ करता है। पार्टी ने विरोधियों से चेहरे छांट कर उन्हें नहला-धुला कर अपने में शामिल किया है और केंद्रीय मंत्री पद के अलावा राज्यों में मुख्यमंत्री के पद भी सौंपे हैं। ऐसे में कट्टर कांग्रेसियों ने भी अगर अपने  राजधर्म को बदल लिया तो हैरानी किस बात की। एकसमय कैप्टन अमरिंदर सिंह भी भाजपा के सख्त विरोधी थे, राजनीतिक रूप से भी उन्होंने कभी भाजपा और उसके नेताओं के प्रति नरमी नहीं दिखाई। लेकिन कांग्रेस में उनके लिए जैसे-जैसे मुश्किलें बढ़ती गई, उनका रूख भाजपा के प्रति नरम होता गया। यह समय की मांग होती है कि उसके अनुसार चला जाए।

पंजाब में और देश में भी भाजपा और कैप्टन अमरिंदर सिंह की स्थिति एक-दूसरे के काम आने की है।  भाजपा से सिख अभी तक दूर रहते आए हैं, उन्हें भाजपा महज हिंदुओं की पार्टी लगती थी, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौर में यह धारणा भी खत्म हो गई। तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन को जिस प्रकार प्रधानमंत्री मोदी ने गुरु नानक देव जी के प्रकाश पर्व पर क्षमा प्रार्थना करते हुए वापस लिया, क्या उसे सिख समाज को मनाने की यथा संभव चेष्टा नहीं समझा जाना चाहिए। ऐसे में अब कैप्टन अमरिंदर सिंह ने उस कमी की पूर्ति कर दी है, जिससे भाजपा अभी तक वंचित थी। हालांकि पार्टी में ही कई बड़े सिख नेता आ चुके हैं, लेकिन कैप्टन अमरिंदर सिंह का आना वास्तव में ही भाजपा के पंजाब में मनोबल को बढ़ाने वाला है, वहीं राष्ट्रीय स्तर पर भी पार्टी उन्हें सामने करके राष्ट्रवाद की अपनी अलख को और ज्यादा पुरजोर तरीके से आगे बढ़ाएगी। इसमें कोई शक नहीं है कि कैप्टन हमेशा देश को ऊपर रखते आए हैं और वे पाकिस्तान की हरकतों से वाकिफ हैं।

वर्ष 2024 का लोकसभा चुनाव भाजपा समेत सभी राजनीतिक दलों के लिए अग्निपरीक्षा साबित होने वाला है। देश की जनता का मूड तब तक क्या होगा, कोई नहीं जानता लेकिन अगर भाजपा जाति,धर्म, क्षेत्र के आधार पर इसी प्रकार अपने समीकरणों को साधती रही तो यह उसके पक्ष में एक बड़ा जनसमर्थन तैयार कर सकती है। भाजपा ने परिवारवाद की राजनीति से भी खुद को अलग किया है, एक समय गांधी परिवार के वफादार रहे कैप्टन जब गांधी परिवार के खिलाफ बोलने के लिए उतरेंगे तो उन्हें जरूर सुना जाएगा। उनके पास राजनीति और प्रशासन का व्यापक भंडार है, जिसका उपयोग भाजपा आगामी चुनाव में करना चाहेगी। यह भी सामने आया है कि अगर किसी राजनीतिक दल को बहुमत मिल भी जाए लेकिन उसके पास सक्षम नेतृत्व नहीं है तो वह बहुमत भी खंड-खंड हो सकता है। कैप्टन ने बतौर मुख्यमंत्री जहां अपने विधायकों, मंत्रियों को साधे रखा वहीं विपक्ष की चुनौतियों का भी जवाब देते रहे। पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सरीखे नेता को खुद से दूर करके कांग्रेस ने अपना नुकसान ही किया है।

इसका परिणाम भी हालिया विधानसभा चुनाव में सामने आ चुका है। कोई भी राजनीतिक दल हो, वह पंजाब के सघन ताने-बाने की अनदेखी नहीं कर सकता। यहां सिख और हिंदू को बांटने का मसला  नुकसान ही पहुंचाता है, हालांकि कैप्टन अमरिंदर दोनों वर्गों को साथ लेकर चलने में माहिर हैं। पंजाब में सुनील जाखड़ के मुख्यमंत्री बनने की राह में धर्म का यही रोड़ा अटकाया गया था। भाजपा पंजाब में गांवों में काफी कमजोर है लिहाजा वह कैप्टन अमरिंदर सिंह के जरिये पार्टी गांवों तक अपनी पकड़ बनाने और वोट बैंक को हासिल करने की रणनीति बनाएगी। भाजपा को लंबे समय से पंजाब में एक मजबूत सिख चेहरे की तलाश रही है, जो पंजाब में पार्टी को राजनीतिक संजीवनी दे सके और हिंदू समुदाय के बीच भी स्वीकार्य हो। उनके रूप में यह जरूरत अब पूरी हो चुकी है, देखते हैं पंजाब की सियासत अब किस करवट बैठती है।